Generic और Branded Medicines – अंतर समझिए
अक्सर
आपने सुना होगा – “Generic दवा सस्ती होती है, लेकिन Branded ज्यादा असरदार होती है।”
क्या यह सच है?
हर मरीज और उसके
परिवार के मन में
यह सवाल आता है
जब डॉक्टर दवा लिखते हैं
और मेडिकल स्टोर पर दोनों विकल्प
मिलते हैं।
आइए
आसान भाषा और उदाहरणों
से समझते हैं कि Generic और Branded दवा में
वास्तविक फर्क क्या है।
1. Generic दवा क्या है?
Generic दवा
वही होती है जिसमें
वही Active
Ingredient होता
है जो किसी Branded दवा
में होता है।
👉 उदाहरण:
- Branded:
Crocin
- Generic:
Paracetamol 500 mg
दोनों
का काम बुखार कम
करना है, फर्क सिर्फ
नाम और पैकेजिंग का
है।
Generic दवा
की खासियतें:
- सरकार द्वारा निर्धारित गुणवत्ता मानकों के अनुसार बनती है।
- कीमत कम होती है क्योंकि इसमें विज्ञापन और पैकेजिंग का खर्च नहीं जोड़ा जाता।
2. Branded दवा क्या है?
Branded दवा
भी वही Active Ingredient होता है
, लेकिन उसे एक कंपनी
के नाम और पैकेजिंग के साथ बेचा
जाता है।
👉 उदाहरण:
Paracetamol को अलग-अलग कंपनियां
Crocin, Calpol, Metacin जैसे
नामों से बेचती हैं।
Branded दवा
की खासियतें:
- आकर्षक पैकेजिंग।
- भारी-भरकम मार्केटिंग और विज्ञापन।
- कीमत ज्यादा क्योंकि आप ब्रांड नाम के लिए भी भुगतान करते हैं।
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3. गुणवत्ता और असर – क्या दोनों समान हैं?
सबसे
बड़ा सवाल यह होता
है कि सस्ती दवा असरदार होगी या नहीं?
✅ सच्चाई
यह है कि:
- Generic
और Branded दोनों में एक ही Salt (सक्रिय तत्व) होता है।
- दोनों को Drug Controller
General of India (DCGI) से
मंजूरी मिलनी जरूरी है।
- दोनों की सुरक्षा और असर का परीक्षण होता है।
👉 फर्क सिर्फ
पैकेजिंग और ब्रांडिंग का
होता है, असर दोनों
का समान रहता है।
4. कीमत में फर्क – जेब पर असर
मान
लीजिए:
- Branded
दवा = ₹50
- Generic
दवा = ₹10-15
अगर
किसी मरीज को रोजाना
BP, डायबिटीज़ या थायरॉइड जैसी
बीमारी के लिए दवाइयाँ
लेनी हों, तो Branded दवा
से मासिक खर्च ₹1500 से ज्यादा हो
सकता है।
वहीं, Generic दवा से वही
इलाज सिर्फ ₹400-500 में हो सकता
है।
इसीलिए
सरकार ने जन औषधि केंद्र शुरू किए, जहाँ
अच्छी गुणवत्ता की Generic दवाइयाँ बहुत कम दाम
पर उपलब्ध हैं।
5. वास्तविक उदाहरण – मानवीय दृष्टिकोण
श्री
शर्मा (उम्र 60 वर्ष) डायबिटीज़ और BP के मरीज हैं।
उन्हें रोज 2-3 दवाइयाँ लेनी पड़ती हैं।
- Branded
दवाइयों से उनका मासिक खर्च लगभग ₹2000 होता है।
- Generic
दवाइयों से वही खर्च सिर्फ ₹500 होता है।
इस अंतर की वजह
से शर्मा जी बिना आर्थिक
तनाव के नियमित दवा
ले पाते हैं।
यही है Generic दवा का सबसे बड़ा लाभ – किफ़ायत और उपलब्धता।
6. मिथक और सच्चाई
❌ मिथक
1: Generic दवा कम असरदार होती
है।
✅
सच्चाई: Salt वही है, असर
भी वही है।
❌ मिथक
2: Generic दवाएँ केवल छोटी कंपनियाँ
बनाती हैं।
✅
सच्चाई: बड़ी फार्मा कंपनियाँ
भी Generic बनाती हैं, बस ब्रांड
नाम का इस्तेमाल नहीं
करतीं।
❌ मिथक
3: डॉक्टर ने Branded लिखी है तो
वही सबसे अच्छी होगी।
✅
सच्चाई: कई बार डॉक्टर
पर मार्केटिंग का असर होता
है, गुणवत्ता में अंतर नहीं
होता।
7. मरीजों के लिए सुझाव
- डॉक्टर से पूछें: “क्या इसका Generic विकल्प उपलब्ध है?”
- नज़दीकी जन औषधि केंद्र से दवाएँ खरीदें।
- हमेशा विश्वसनीय मेडिकल स्टोर से ही दवाएँ लें।
- लंबे समय तक चलने वाली बीमारियों (BP, डायबिटीज़, थायरॉइड) के मरीज एक ही Salt/Generic पर टिके रहें – बार-बार ब्रांड बदलने से बचें।
8. निष्कर्ष
Generic और
Branded दोनों दवाइयाँ सुरक्षित और असरदार होती
हैं।
👉 Branded महंगी होती है क्योंकि
उसमें पैकेजिंग और ब्रांड नाम
की कीमत जुड़ी होती
है।
👉
Generic सस्ती होती है, जिससे
ज़्यादा मरीज लगातार अपना
इलाज जारी रख सकते
हैं।
अंत
में, सबसे महत्वपूर्ण है
कि आप दवा नियमित
और सही मात्रा में लें।
सही दवा वही है
जो आपकी सेहत और
आपकी जेब – दोनों के लिए संतुलित
हो।
THANK YOU
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